शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

, लघुकथा" कोरोना"आदरणीय पवन जी,सादर अभिवादन, आज ही लिखी गई लघुकथा, निर्ममता-पूर्वक आकलनार्थ,सादर प्रेषित है--- " *लाक*डाउन* " ========= -गोपेश वाजपेयी .......और हां बेटा मोहन, बनारस से भोपाल आते समय पांच लीटर वाली बोतल में गंगाजल ज़रूर लेते आना। मोबाइल पर मां ने फ़रमाइश कर दी थी। ट्रेन के सफ़र में दोस्त कमेंट करते रहे- अबे! नहाएगा क्या,इतने गंगाजल से। कुछ कम में भी काम चल सकता था। मां का आज्ञाकारी श्रवण कुमार!, पूरा रामायणी हो गया है, भाई। अरे यार! मां का फ़रमान था,क्या करता,सठिया जो गयी हैं,मम्मी। गंगाजल भी कोई ले जाने की चीज है। प्योर आर.ओ वाटर तो घर में ही मिल जाता। पास की बर्थ पर अधलेटा बूढ़ा भी ज्ञान देने लगा- "कभी भी ख़राब नहीं होता गंगाजल, हमेशा ही निर्मल रहता है।" जैसे-तैसे वह घर पहुंचा। शहर में आज़ लाक डाउन का चौथा सप्ताह है। टोटल लाक डाउन,सभी ओर बंद है, कैंपस में सोसायटी की वाटर सप्लाई भी बंद है। सोसायटी के पंप हाउस की मोटर ख़राब है। लाक डाउन खुलने पर ही ठीक होगी। अच्छा हुआ, मां लाक डाउन के पहले ही गांव पहुंच गयीं। शहर में आनलाइन बुकिंग पांच मिनट में ही फुल। दूधवाला आ नहीं पा रहा, पुलिस वाले मारते पहले और पूंछते बाद मे हैं।दूध तो छोड़िए, घर में आज़ पीने को दो घूंट पानी भी नहीं बचा। टोटल लाक डाउन... देर रात बारह बजे, भीषण गर्मी में मोहन को खूब ज़ोर की प्यास लगी। भुतही रात में कहां और किससे और कैसे मिलेगा पानी।फ्रिज खाली,उधर आर.ओ में रत्ती भर भी पानी नहीं। मोहन को लगा,क्या वह प्यासा ही मर जाएगा।गला सूख गया था, डिहाइड्रेशन से बुखार भी। कहीं कोरोना तो नहीं। क्या कल का उगता सूरज भी....., नहीं-नहीं,हे! भगवान... टोटल लाक डाउन के संकट के इस बुरे समय में घर के छोटे से मंदिर के एक कोने में रखी बोतल पर मोहन की विस्फारित आंखें जा टिकीं। प्यासा मोहन बड़ी उत्सुकता से उधर बस देखे ही जा रहा था। उसके कानों में मां की मनुहार गूंज उठी- "बेटे गंगाजल ज़रूर लेते आना"। और उस बुज़ुर्ग का अनचाहा ज्ञान-"कभी भी ख़राब नहीं होता गंगाजल".... शहर में टोटल लाक डाउन अभी भी चल रहा है....।

आदरणीय जी,सादर अभिवादन,
आज ही लिखी गई लघुकथा, निर्ममता-पूर्वक आकलनार्थ,सादर प्रेषित है---
            " *लाक*डाउन* "
             =========
                       -गोपेश वाजपेयी
.......और हां बेटा मोहन, बनारस से भोपाल आते समय पांच लीटर वाली बोतल में गंगाजल ज़रूर लेते आना।
मोबाइल पर मां ने फ़रमाइश कर दी थी।
ट्रेन के सफ़र में दोस्त कमेंट करते रहे-
अबे! नहाएगा क्या,इतने गंगाजल से। कुछ कम में भी काम चल सकता था। मां का आज्ञाकारी श्रवण कुमार!,
पूरा रामायणी हो गया है, भाई।
अरे यार! मां का फ़रमान था,क्या करता,सठिया जो गयी हैं,मम्मी।
गंगाजल भी कोई ले जाने की चीज है।
          प्योर आर.ओ वाटर तो घर में ही मिल जाता।
पास की बर्थ पर अधलेटा बूढ़ा भी ज्ञान देने लगा-
"कभी भी ख़राब नहीं होता गंगाजल, हमेशा ही निर्मल रहता है।"
जैसे-तैसे वह घर पहुंचा।
शहर में आज़ लाक डाउन का चौथा सप्ताह है। टोटल लाक डाउन,सभी ओर बंद है, कैंपस में सोसायटी की वाटर सप्लाई भी बंद है। सोसायटी के पंप हाउस की मोटर ख़राब है। लाक डाउन खुलने पर ही ठीक होगी।
अच्छा हुआ, मां लाक डाउन के पहले ही गांव पहुंच गयीं।
   शहर में आनलाइन बुकिंग पांच मिनट में ही फुल। दूधवाला आ नहीं पा रहा, पुलिस वाले मारते पहले और पूंछते बाद मे हैं।दूध तो छोड़िए, घर में आज़ पीने को दो घूंट पानी भी नहीं बचा।
टोटल लाक डाउन...
देर रात बारह बजे, भीषण गर्मी में मोहन को खूब ज़ोर की प्यास लगी।
     भुतही रात में कहां और किससे और कैसे मिलेगा पानी।फ्रिज खाली,उधर आर.ओ में रत्ती भर भी पानी नहीं।
     मोहन को लगा,क्या वह प्यासा ही मर जाएगा।गला सूख गया था, डिहाइड्रेशन से बुखार भी।
कहीं कोरोना तो नहीं। क्या कल का उगता सूरज भी....., नहीं-नहीं,हे! भगवान...
    टोटल लाक डाउन के संकट के इस बुरे समय में घर के छोटे से मंदिर के एक कोने में रखी बोतल पर मोहन की विस्फारित आंखें जा टिकीं।
प्यासा मोहन बड़ी उत्सुकता से उधर बस देखे ही जा रहा था।
उसके कानों में मां की मनुहार गूंज उठी-
"बेटे गंगाजल ज़रूर लेते आना"।
और उस बुज़ुर्ग का अनचाहा ज्ञान-"कभी भी ख़राब नहीं होता गंगाजल"....
शहर में टोटल लाक डाउन अभी भी चल रहा है....।

गुरुवार, 26 मार्च 2020


सोमवार, 30 अप्रैल 2018

kavi sammelan {Episode 15}

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

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बुधवार, 2 दिसंबर 2015

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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

GOPESHNAMA: BHOPAL

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